गुरु गोरखनाथ गुरु मंत्र
दादा गुरु मत्स्येन्द्रनाथ जी के प्रति गुरु भक्ति
एक बार की बात है, मत्स्येंद्रनाथ गोरखनाथ के साथ कहीं जा रहे थे। उन्होंने एक छोटी-सी नदी पार की। मत्स्येंद्रनाथ एक पेड़ के नीचे बैठ गए और बोले, ‘मेरे लिए पानी ले आओ।’ गोरखनाथ तो एक सिपाही की तरह थे। उनके गुरु ने पानी मांगा था और वह तुरंत इस काम को पूरा कर देना चाहते थे। पानी लाने के लिए वह नदी की ओर चल दिए। उन्होंने देखा कि उस छोटी-सी नदी से उसी समय कुछ बैलगाडिय़ां होकर गुजरी हैं, जिसकी वजह से उसका पानी गंदा हो चुका था। वह दौड़ते हुए अपने गुरु के पास आए और बोले, ‘गुरुजी, यहां का पानी गंदा है। यहां से थोड़ी ही दूरी पर एक और नदी है। मैं वहां जाकर आपके लिए पानी ले आता हूं।’
मत्स्येंद्रनाथ ने कहा, ‘नहीं, नहीं। मेरे लिए इसी नदी से पानी लेकर आओ।’ गोरखनाथ बोले, ‘लेकिन वहां का पानी गंदा है।’ मत्स्येंद्रनाथ ने कहा, ‘मुझे उसी नदी का और उसी स्थान का पानी चाहिए। मुझे बहुत प्यास लगी है।’ गोरखनाथ फिर से नदी की ओर दौड़े, लेकिन पानी अभी भी बहुत गंदा था। उन्हें समझ में नहीं आया कि क्या करें। वे लौट कर फिर गुरु के पास आए।
मत्स्येंद्रनाथ ने फिर वही कहा, ‘मैं प्यासा हूं। मेरे लिए पानी लाओ।’ गोरखनाथ बुरी तरह उलझन में फंस गए। वह यहां से वहां यह सोचते हुए दौड़ते रहे कि आखिर क्या किया जाए। वे फिर से गुरु के पास आए और प्रार्थना की, ‘यहां का पानी गंदा है। मुझे थोड़ा वक्त दीजिए। मैं आपको दूसरी नदी से साफ पानी लाकर देता हूं।’ गुरु बोले, ‘नहीं, मुझे तो इसी नदी का पानी चाहिए।’
उलझन में डूबे गोरखनाथ वापस नदी पर गए। उन्होंने देखा कि अब नदी का पानी कुछ स्थिर हो गया है और पहले के मुकाबले थोड़ा साफ है। उन्होंने थोड़ा और इंतजार किया। कुछ देर में पानी पूरी तरह साफ हो गया। गोरखनाथ आनन्द विभोर होकर पानी लिए गुरु के पास पहुंचे और मत्स्येंद्रनाथ को पानी दिया। मत्स्येंद्रनाथ ने पानी एक तरफ रख दिया, क्योंकि वे वास्तव में प्यासे नहीं थे।
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दरअसल, वह इस तरह को एक संदेश दे रहे थे। गोरखनाथ एक ऐसे इंसान थे जो गुरु की कही बात हर हाल में पूरी करते। अगर उनसे एक मंत्र का दस बार जाप करने को कहा जाता, तो वह उसका दस हजार बार जाप करते। वह हमेशा गुरु की आज्ञा पूरी करने को तैयार रहते। जो उनसे कहा जाता, उसे बड़ी श्रद्धा और लगन के साथ पूरा करते थे। यह उनका महान गुण था, लेकिन अब वक्त आ गया था कि वे दूसरे आयाम में भी आगे बढ़ें, इसलिए मत्स्येंद्रनाथ ने उन्हें समझाया- यहां-वहां भाग-दौड़ करके और मेहनत करके तुमने अच्छा काम किया है, लेकिन अब वक्त आ गया है, जब तुम्हें बस इंतजार करना है, और तुम्हारा मन बिलकुल शांत और साफ हो जाएगा।
आज आपको एक येसा मंत्र दे रहा हू जिससे आपको गुरु गोरखनाथ प्रेम देगे,शिष्यत्व देगे,अपना शिष्य समजकर स्वयं की शक्तियाँ प्रदान करेंगे,स्वयं गुरु के तरह आपको वह सब देगे जो आपका कामना हो।मुख्य बात बता देता “इस मंत्र के जाप से आप गुरु गोरखनाथ जी के शिष्य बन जायेंगे और वह आपके गुरु बन जायेंगे”,एक बात याद रखिये गुरु गोरखनाथ जी ने अपने देह को त्याग नही किया है। इसलिये वह आज भी स्वयं प्रत्यक्ष रूप मे अपने शिष्य के सामने प्रत्यक्ष हो जाते है। जिन्हे जिवन मे गुरु नही है वह गोरखनाथ जी को गुरु मानकर दीये हुए मंत्र का जाप किसी भी गुरुवार से प्रातः शुरु करें।
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सर्वप्रथम पिला वस्त्र बिछाये और उसके उपर गोरखनाथ जी का कोइ भी सुंदर चित्र स्थापित करें।अब गोरखनाथ जी से प्रार्थना करे “हे नाथ,आप सर्वव्यापी है आप सिद्ध गुरु है कृपया मुझे अपना आशिर्वाद प्रदान करके अपना शिष्य बना लिजीये,मै आजसे आपको ही अपना गुरु मानता हू”। इस तरह प्रार्थना करके मंत्र का जाप रुद्राक्ष माला से शुरु करें। रुद्राक्ष माला ही आपका गुरुमंत्र माला है,जिसका उपयोग सिर्फ इसी मंत्र जाप हेतु करे। यह सिर्फ गोरखनाथ जी का मंत्र ही नही है अपितु एक शिष्य के लिये गुरुमंत्र है और समस्त सन्सार मे गुरुमंत्र को ही चिंतामणि मंत्र कहा जाता है।
इस मंत्र से समस्त साधना मे सफलता प्राप्त होता है। गुरुकृपा प्राप्त होती है। सभी मनोकामनाये गुरु गोरखनाथ जी पुर्ण करते है और अपने शिष्य की सदैव रक्षा करते है।
गोरख गुरुमंत्र:-
।।सोहं गोरक्ष गुरुर्वै नमः ।।
soham goraksha gururvei namah
इसी मंत्र से कुण्डलीनी जागरण भी सम्भव है। मंत्र दिखने मे भले ही छोटा है परंतु गुरुमंत्र है,इसलिए आजमाने हेतु मंत्र का जाप ना करे और नित्य मंत्र का 1,3,5,7,11…..21 की संख्या मे जाप किया करे। मंत्र जाप पुर्ण विश्वास और श्रद्धा के साथ करे तो आपका जिवन ही बदल जायेगा।